सब आते जाते हैं
बोलती नहीं धरती कुछ
सहती रहती है
सहती जाती है
कहती नहीं किसी से कुछ
मौन रहती है
बादल से करती है मन की बात
मन भरकर
बादल ही पहाड़ बन
टूट पड़े जब उस पर
किससे कहने जाए क्या कहे कुछ,
मन मसोस कर रह जाती है
विश्वास हृदय का ढह जाता है
नहीं जी रही वह बादल के सहारे
कहना चाहती है
टिका है बादल उसके आधार पर
कहते सकुचाती है कुछ